*# काव्य कथा वीथिका #*-85
( लघु कथा पर आधारित कविता)
***********************
जीवन रेखा कितनी पतली....
************************।
कर्म के पथ का अनुगामी हूँ,
कर्म के पथ पर चलता हूँ ।
आँखों का निर्मल आँसू हूँ,
उज्जवल जल बन बहता हूँ ॥
जीवन को निःस्वार्थ भाव से ,
जीने का संकल्प लिए ।
राग द्वेष से विरत जिंदगी,
सुख दुःख का विकल्प लिए ॥
जीवन तट पर मोती चुनता,
और हृदय मेंं रखता हूँ ।
नही शौर्य और मौर चाहता,
पाँवो के तल रहता हूँ ॥
मैं धरती की धूल सदृश्य हूँ,
दिल ईश्वर मेंं रमता है़ ।
मुझको चरण पादुका समझो,
जो पैरों मेंं रहता है़ ॥
मेरी एक छोटी दुनियाँ है़,
छोटे घर मेंं रहता हूँ ।
छोटी छोटी गलती करता,
क्षमा मांग कर जीता हूँ ॥
जीवन रेखा कितनी पतली,
इसको अब बतलाना क्या ।
जो भी जीवन शेष बचा,
उसमे "हम" को लाना क्या ॥
कर्म हमारी पूंजी है़ ,
उसके संग मेंं जीता हूँ ।
जितनी श्वासे दी ईश्वर ने,
उन श्वासों संग रहता हूँ ॥
राजेश कुमार सिंह "राजेश"
दिनांक 03-04-2020
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें