राजेश कुमार सिंह "राजेश"

*# काव्य कथा वीथिका #*-92
( लघु कथा पर आधारित कविता)
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शब्द हमारे भाव और, 
अन्तर्मन के दर्पण होते। 
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घर के उस सुन्दर बालक ने, 
    मद्धिम स्वर मेंं ज्योंही बोला । 
कु़छ कहने को आगे आया, 
     हल्का सा ज्योंही मुंह खोला ॥ 


एक तेज झिड़क ने पल भर मेंं, 
      उसकी रंगत को बदल दिया । 
एक निर्दोष जैसे दोष लिए, 
      उल्टे कदमों से पलट लिया ॥ 


ये शब्द हमारे भाव और, 
           अन्तर्मन के दर्पण होते । 
ये शब्द खाड़ से मीठे बन, 
             ईश्वर को अर्पण होते ॥ 


शब्दों के दम पर, जीवन के, 
             सुन्दर सोपान खड़े होते । 
शब्दों के सुघर समर्पण से, 
         सब दीये लिए खड़े होते ॥ 


कथा वीथिका की पंक्ति, 
    शब्दों के कारण जानी जाती। 
साहित्य जगत की हर हस्ती, 
           शब्दों से पहचानी जाती ॥ 


वह सुन्दर बालक नौकर था, 
          उस ऊंची बड़ी हवेली का । 
फासला बीच का इतना था, 
           मर्सडीज और  ठेली का ॥


अब इन हालातों को देखो, 
          ये ऩजर आपकी खोलेगी । 
हर शक्तिमान अब भीगा है, 
      कविता  चिल्ला कर बोलेगी ॥  


राजेश कुमार सिंह "राजेश"
दिनांक 10-04-2020


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