तन्हा लम्हे
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तन्हा - तन्हा लम्हे हैं
सूनी- सूनी रातें हैं
अपने मुकद्दर की
कैसी - कैसी बातें हैं ।
तन्हा- तन्हा लम्हे हैं
ये भी गुज़र जाना है
ज़िंदगी की राहों में
कुछ दिन बिताना है ।
सावन में पतझड़ है
पतझड़ में सावन है
ज़िदगी की बाँहों में
कैसा ये फ़साना है।
सूरज डूबा - डूबा- सा
मावस का अँधेरा है
काली - काली रातों में
नहीं जुगनू का ठिकाना है
तन्हा- तन्हा लम्हे हैं
सूनी - सूनी रातें हैं ।
दर्द की बारिश है
आँसू ही बहाना है
फूलों की तमन्ना थी
काँटों का ख़ज़ाना है ।
पल - पल तरसी हूँ
बूँद - बूँद पानी के लिए
आँसुओं की धारा से
अब प्यास को बुझाना है
आने दो , जिस तूफ़ां को आना है
बेचैन होना नहीं
धैर्य भी खोना नहीं
ये भी गुज़र जाना है
तन्हा- तन्हा लम्हे हैं
सूनी- सूनी रातें हैं
अपने मुकद्दर की
कैसी- कैसी बातें हैं ।
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रवि रश्मि ' अनुभूति '
17.2.1997, 2:17 पी. एम. पर रचित ।
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