रवि रश्मि ' अनुभूति ' मुंबई

तन्हा लम्हे 
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तन्हा - तन्हा लम्हे हैं 
सूनी- सूनी रातें हैं 
अपने मुकद्दर की 
कैसी - कैसी बातें हैं ।
तन्हा- तन्हा लम्हे हैं 
ये भी गुज़र जाना है
ज़िंदगी की राहों में 
कुछ दिन बिताना है ।
सावन में पतझड़ है 
पतझड़ में सावन है 
ज़िदगी की बाँहों में 
कैसा ये फ़साना है।
सूरज डूबा - डूबा- सा 
मावस का अँधेरा है 
काली - काली रातों में 
नहीं जुगनू का ठिकाना है 
तन्हा- तन्हा लम्हे हैं 
सूनी - सूनी रातें हैं । 
दर्द की बारिश है
आँसू ही बहाना है 
फूलों की तमन्ना थी 
काँटों का ख़ज़ाना है ।
पल - पल तरसी हूँ 
बूँद  - बूँद पानी के लिए 
आँसुओं की धारा से 
अब प्यास को बुझाना है 
आने दो , जिस तूफ़ां को आना है 
बेचैन होना नहीं 
धैर्य भी खोना नहीं 
ये भी गुज़र जाना है 
तन्हा- तन्हा लम्हे हैं 
सूनी- सूनी रातें हैं 
अपने मुकद्दर की 
कैसी- कैसी बातें हैं ।
        ????? 


रवि रश्मि ' अनुभूति ' 
17.2.1997, 2:17 पी. एम. पर रचित ।
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