सम्राट की कविताएं

कविता---शीर्षक ---क्रांति


लोगों की सोच बदली,
सब ने थामी एक एक मशाल,
एक लहर सी दौड़ी चारो ओर,
तन मन में हुआ हाहाकार,
जर्रा जर्रा थर्राया, कांप उठा आसमान,
एक चिंगारी जो फूटी,
कुछ मुर्दो में भी आई जान,
दबे कुचलों का साहस बढ़ा,
आखों में स्वप्न सुनहरे आए,
कुछ दबंग सहमे,
कुछ राजनेता भय खाये,
जन मन की आवाज बन,
वो मशाल बढ़ने लगा,
आतताइयों के आगे,
सिर उठा तनने लगा,
देख साहस उस मशाल की,
बड़े बड़े घबराए थे,
कुछ ऊची टोपी वाले,
सिर झुका उससे मिलने आए थे,
राह में कुछ प्रचंड आँधियों ने उसे ललकारा था,
पर वो कहाँ डरने वाला था,
उसे सच्चाई और ईमानदारी का सहारा था,
वो अविचल खड़ा था,
उन प्रचंड तूफानों में,
जैसे जुगनू टिमटिमाता,
अमावस्या के घोर अंधियारे में,
आखिर उसने विजय पाई,
कितनों को नव जीवन दान दिया,
एक अकेले ने न जाने,
कितने मुद्दों का समाधान किया,
भूख, गरीबी, बेरोजगारी मिटाई,
यहाँ तक कि भ्रूण हत्या का निदान किया,
एक बार जो जाली ज्वाला ,
सदियों तक बुझ न पाएगी,
जब भी जरूरत आन पड़ेगी,
फिर से नई क्रांति होगी,
फिर से नई मशाल जल जाएगी,
फिर से नई मशाल जल जाएगी।


©️सम्राट की कविताएं


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...