पिता क्या होते है*
विधा: कविता
अंदर ही अंदर घुटता है।
पर ख्यासे पूरा करता है।
दिखता ऊपर से कठोर।
पर दिलसे नरम होता है।
ऐसा एक पिता होता है।।
कितना वो संघर्ष है करता।
पर उफ किसीसे नहीं करता।
लड़ता है खुद जंग हमेशा।
पर शामिल किसीको नहीं करता।
जीत पर सबको खुश करता है।
हार किसी से शेयर न करता।
ये एक पिता ही कर सकता।।
खुद रहे दुखी पर,
घरवालों को खुश रखता है।
छोटी बड़ी हर ख्यासे,
घरवालों की पूरी करता है।
फिर भी बीबी बच्चो की,
सदैव बाते वो सुनता है।
कभी रुठ जाते मां बाप,
तो कभी पत्नी रूठ जाती है।
इसलिए दोनों के बीच में,
बिना वजह वो पिसता है।
इतना सहन शील इंसान,
एक पिता ही हो सकता है।।
समझ न सके उसे कोई।
इसलिए वो अंदर ही अंदर।
स्नेह प्यार को तरसता है।
पर पिता को ये सब,
अब कहाँ पर मिलता है।।
जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन बीना(मुम्बई)
02/03/220
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