*रूठ गये भगवान*
विधा : कविता
आशा निराशा के,
इस दौर में लोगो।
कितना कुछ अब,
मानो बदल रहा।
कलयुग में अब,
सब कुछ बदल गया।
और कलयुग का अर्थ,
अब सार्थक हो गया।।
सोचा भी नही होगा लोगों ने,
की ऐसे दिन भी आएंगे।
भगवान भी अपनो से,
मानो रूठ जाएंगे।
और अपने द्वार भी
भक्तों को बंद कर देंगे।
न देंगे खुद दर्शन और
न पूजन करवाएंगे।।
भगवान खुद एकांत,
वास में चले गए है।
और एकचित होकर,
खुद भी चिंतित है।
मानव के पापो का
ये परिणाम है।
जो भर चुका था तो
उससे फूटना ही था।।
और अपने कर्मो को
भोगना भी तो है।।
जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)
13/04/2020
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