*हवाओ पूंछ लेते है*
विधा : कविता
दूर है तुम्हारे घर से,
मेरे घर का किनारा।
पर हवाओ के झोके से,
पूंछ लेते है हाल तुम्हारा।
लोग कहते है की,
जिन्दा रहेंगे तो मिलेंगे।
पर में कहता हूं की,
मिलते रहने से जिन्दा रहेंगे।।
दर्द कितना खुश नसीब है।
जिसे पाकर अपनों को याद करते है।
दौलत कितनी वदनसीब है।
जिसे पाकर अपनों को भूल जाते है।।
छोड़ दिया सब को,
बिना वजह परेशान करना।
जब कोई अपना,
हमें समझता ही नहीं।
तो उसे याद दिलाकर, मुझे क्या करना।
भूल जाते है बेटे भी,
इस दौर में मां बाप को।।
जिंदगी गुजर गई,
सबको खुश करने में।
जो खुश हुए भी,
वो अपने नहीं थे।
और जो अपने थे,
वो भी खुश नहीं हुए।
ये कलयुग है भाई,
यहां कोई किसका नही।।
इसलिए संजय कहता है।
कर्मो से डरिये,
ईश्वर से नहीं।
ईश्वर माफ़ कर देता है।
परन्तु खुद के कर्म नहीं।।
जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई )
01/04/2020
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