सत्यप्रकाश पाण्डेय

आराधक


आराधक बन मैं करुं आराधना,
हे!मातृभूमि तेरे चरणों की।
तेरी हवा बसी मेरी सांसों में,
तू आराध्य मेरे जीवन की।।
मैंने तुझ संग खिलवाड़ किया,
तेरा स्वरूप खूब बिगाड़ा।
प्राकृतिक सुषमा को छेड़ा,
दोहन कर संतुलन बिगाड़ा।।
जीवनदायिनी बनकर तुमने,
रक्षा की है नर जीवन की।
आराधक बन मैं करुं आराधना,
हे!मातृभूमि तेरे चरणों की।।
शस्यश्यामला जग जननी तुम,
करती रहीं सदियों से उपकार।
 फल फूल और धन धान्य से,
खूब लुटाया मां तूने प्यार।।
हर दुःख को सहकर भी माता,
अतुलित छवि तेरे आनन की।
आराधक बन मैं करुं आराधना,
हे!मातृभूमि तेरे चरणों की।।
मल मूत्र सब वहन कर रही,
काटा खोदा और खरोंचा।
तार तार मर्यादाएं किन्हीं,
शायद तुमने कभी न सोचा।।
धैर्यवान हे क्षमाशील मां,
मैं बलिहारी तेरे चरणों की।
आराधक बन मैं करुं आराधना,
हे!मातृभूमि तेरे चरणों की।।
वृक्ष काट वीरान कर दिया,
पर्वत काट छीन लिया श्रृंगार।
भ्रूण हत्या व बलात्कारी बन,
खूब किया कुत्सित व्यवहार।।
हर अपराध क्षमा तुन्हें किन्हें,
बन प्रत्याशा मम जीवन की।
आराधक बन मैं करुं आराधना।
हे!मातृभूमि तेरे चरणों की।।
निज कर्तव्यों से विगलित हो,
नहीं कर पाया मां तेरा सम्मान।
झूठ फरेब और छल कपट से,
निशदिन करता रहा अपमान।।
कैसे ऋण मुक्त करुं मैं खुद को,
यह पीड़ा है अब मेरे मन की।
आराधक बन मैं करुं आराधना,
हे!मातृभूमि तेरे चरणों की।।


सत्यप्रकाश पाण्डेय🙏🙏


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