सत्यप्रकाश पाण्डेय

घिरा आज चारों ओर अंधेरा
हम तनिक न उससे घबराएं
हम सब  लड़ेंगे अंधकार से
आओ एक एक दीया जलाएं


त्याग हताशा और निराशा
आओ स्फूर्ति का राग जगाएं
कुंठित है जो जन मानस अब
उनका मन हर्षित कर जाएं 


चलना है हमें आगे बढ़ना है
घबराएं न कैसे भी आघातों से
मंजिल तो अभी भी बाकी है
लड़ेंगे मिलकर झंझावातों से


छाया कुहासा आज जगत में
आओ मिल कर उसे भगाएं
करें हृदय की ज्योति प्रज्वलित
आओ एक एक दीया जलाएं


सत्यप्रकाश पाण्डेय


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