सत्यप्रकाश पाण्डेय

कोरोना का कहर........


कोरोना का कहर बरस रहा
त्रसित है आज दुनियां सारी
मानव मात्र में भय व्यात है
यह फैला बनकर महामारी


इतना कटु है अनुभव इसका
नहीं औषधि नहीं कोई उपाय
आलिंगन चुम्बन व स्पर्श नहीं
यह दूरी से लेता पैर जमाय


रोम रोम में सिहरन होती है
जब सुनते हैं इसका इतिहास
आ जाये गर कोई चपेट में
परिजनों को मिले नहीं लाश


बिना पानी के मीन तड़पती
वैसे तड़पे इससे ग्रस्त शरीर
मौत भी इससे मौत मांगती
हो जाओ इसके प्रति गंभीर


घर में रहना कोई पाप नहीं है
मिलता यदि कोरोना से त्राण
क्या करोगे घर परिवार का
जब न रहेंगे खुद के ही प्राण


बचो अनर्गल भीड़ भाड़ से
त्यागो मॉल सिनेमा व बाजार
सिनेटाइजर साबुन अपनालो
लांघों नहीं घर की देहरी द्वार


दिया है अवसर तुम्हें प्रकृति ने
समय बिताओ अपनों के पास
एक साथ के लिए तरसते थे
हसो खिलो तुम न रहो उदास


बहो समय की धारा के संग
रहे सुरक्षित कैसे ये जीवन
शरीर ही है धर्म का साधन
करो सुनिश्चित इसका रक्षण


थोड़ी सी लापरवाही तुम्हारी
देगी जीवन को खतरे में डाल
अमूल्य निधि के सरंक्षण में
सभी काम दे मानव तू टाल


जीवन से बढ़कर कुछ भी ना
तुम बाहर का दुस्साहस करोना
घर में रहो बस घर में रहो तुम
कुछ न बिगाड़ पायेगा कोरोना।


सत्यप्रकाश पाण्डेय


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