जगतपिता व जगजननी का जिसने रूप निहारा
ऐसा बस गया अन्तर्मन में तन मन उस पर वारा
युगलछवि की अनुपम छवि को नयनों में बसाऊं
त्याग दूँ सारे मोह बंधन मैं तो उनके ही गुण गाऊं
हर विपत्ति हरेंगी जग की वृषभानु सुता बृजरानी
कौंन करेगा बाल बांका जब रक्षक बृज ठकुरानी।
युगलरूपाय नमो नमः🌹🌹🌹🌹🌺🌺🙏🙏🙏🙏🙏🙏
सत्यप्रकाश पाण्डेय
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें