जिंदगी मे ली जब पहली सांस।
ऊसमे होती रही बडी हमे आस।
जब से पहला बढाया कदम।
कही मिली खुशिया, कही हुए निराश।
रोडे राहो मे थे, रोकने को बेताब।
बचपन के हम भी ठहरे नवाब।
माता,पिता की छांव थी।।
बगियां महक रही थी घर की।
तब तक सुखी बहुत ही रहतेः
जब तक देखी ना हमने दुनिया।
फिर एक मन उडने को कहता।
दूजा आकर पर है काटता।
कही सफलता, और विफलता।
इसमे बढ ग ई कितनी उलझने।
देखा कभी तो शांति ही दिखती।
पर कही तो टुट हम जाते।
ऐसा गम हमे.आकर घेर लेता।
आओ आज तक गम मे रहे हम।
अब इस गम को मार भगाए।
और बची जितनी.है.सांसे।
उनको बचाकर कुछ कर जाए।
श्रीमती ममता वैरागी। तिरला धार
"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
श्रीमती ममता वैरागी। तिरला धार
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