श्रीमती ममता वैरागी.तिरला धार

सदिया गुजर ग ई।
खत्म ना हुआ,
नारी का लाकडाउन।
घर के भीतर ,और उसमे भी पर्दा।
रहती आई ,सिसक सिसक।
पर मजाल वह बाहर आती।
या उडने को है.मचलती।
बाबुल के घर भी अंदर रहती।
और ससुराल मे.भी है तडफती।
कभी देखा था ,उसवक्त ये हाल।
चुल्हा जलता था, भीषण गर्मी मार।
पूरे शरीर पर फफोले.से रहते।
फिर मुस्कुराती ,भोजन बनाती।
घर के अंदर और घूंघट मे।
दस दस किलो.मिर्च है कुटती।
और देखो कैसे घट्टी.मे।
ये दोनो हाथो आटा है.पीसती।
लाकडाऊन, शक्त पहरा ससुर का।
ना जरा भी आराम कर.पाती।
कोख मे बच्चा.हो फिर भी।
कैसे ये. पनघट पानी है.भरती।
वाह री.नारी.,तू.  रहे। सलामत।।
कितनी चोट तू सहती.रहती।
पर.फिर भी लब लाल है.रहते।
और सुंदर यह.मुरत लगती।
श्रीमती ममता वैरागी.तिरला धार


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