कविता;-
*"कौमी एकता"*
"कौमी एकता का देते रहे संदेश,
देश की विपत्ति मे भी-
माने न किसी की बात।
होते रहे इक्कठा मस्ज़िद और मदरसो में,
मानी न किसी बात-
दिया देश की सफलता को आघात।
विवाद पर विवाद बढ़ता रहा,
अपने हो कर भी अपने नही-
कैसे-बनेगी अब बात?
विकट परिस्थिति में भी,
होना न विचलित-
सुनो मन की बात।
कौमी एकता की बात करते,
देखा मस्ज़िद मदरसो का हाल-
मुश्किल घड़ी में बिगड़ी बात।
अब विवाद नही समाधान चाहिए,
कौमी एकता की-
मिशाल की हो बात।
हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई सभी जब,
करें देश हित की बात-
सार्थक हो कौमी एकता की सौगात।।
ःःःःःःःःःःःःःःःःःः सुनील कुमार गुप्ता
07-04-2020
"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
सुनील कुमार गुप्ता
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