कविता:-
*"ऐसे दीप जलाना"*
"दूर हो अंधेरा मन का,
यहाँ ऐसे दीप जलाना।
भूले कटुता जीवन की फिर,
ऐसे गीत गुनगुनाना।।
दीप से दीप जला साथी,
ऐसा कर दे उजाला।
भटके न पथ से फिर,
साथी तुम साथ निभाना।।
दीप से दीप जला देखो,
ऐसा होगा उजाला।
छाया नहीं होगी तम की,
पग पग होगा उजाला।।
झूठ-फरेब की धरती पर,
सच का दीपक जलाना।मिटा अंधकार जीवन का,
उसे उज्ज़वल बनाना।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःः सुनील कुमार गुप्ता
sunil
ःःःःःःःःःःःःःःःः
16-04-2020
"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
सुनील कुमार गुप्ता
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