सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
      *"ऐसे दीप जलाना"*
"दूर हो अंधेरा मन का,
यहाँ ऐसे दीप जलाना।
भूले कटुता जीवन की फिर,
ऐसे गीत गुनगुनाना।।
दीप से दीप जला साथी,
ऐसा कर दे उजाला।
भटके न पथ से फिर,
साथी तुम साथ निभाना।।
दीप से दीप जला देखो,
ऐसा होगा उजाला।
छाया नहीं होगी तम की,
पग पग होगा उजाला।।
झूठ-फरेब की धरती पर,
सच का दीपक जलाना।मिटा अंधकार जीवन का,
उसे उज्ज़वल बनाना।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःः           सुनील कुमार गुप्ता
sunil
ःःःःःःःःःःःःःःःः
       16-04-2020


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...