कविता:-
*"मन की बातें"*
"सोचते-सोचते साथी,
मन की बातें-
बीत गई कितनी रातें?
मिलना-मिलकर बिछुड़ना,
जीवन में-
दे गया कई सौगातें।
अपनत्व की धरती पर,
रह गई -
कही-अनकही बातें।
ठहर कर कुछ पल साथी,
होती जो उनसे-
कुछ मीठी बातें।
मिटती कटुता जीवन से,
छाता मधुमास-
पूनम की होती रातें।
सोचते-सोचते साथी,
मन की बातें-
बीत गई कितनी रातें ?"
ःःःःःःःःःःःःःःःःः सुनील कुमार गुप्ता
sunilgupta
ःःःःःःःःःःःःःःःःःः 10-04-2020
"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
सुनील कुमार गुप्ता
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