कविता:-
*"सोचकर देखो जरा"*
"क्या-खोया,क्या-पाया
साथी,
इस जीवन में-
सोचकर देखो जरा।
तेरा-मेरा करते -करते साथी,
कितना-कुछ खोया हमने-
सोचकर देखो जरा।
अपने अपनो और देश हित में साथी,
घर में रह कर दिया योगदान-
सोचकर देखो जरा।
विपत्ति के समय में साथी,
तुम्हारा धैर्य देख रहा विश्व,
सोचकर देखो जरा।
तुम चाहोगें तो ये भी साथी,
बीत जायेगी काल रात्रि-
सोचकर देखो जरा।
होगा जीवन का नया सबेरा साथी,
छायेगी खुशियाँ ही खुशियाँ-
सोचकर देखो जरा।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःः सुनील कुमार गुप्ता
sunilgupta.
ःःःःःःःःःःःःःःःःःः 25-04-2020
"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
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