सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
    *"सोचकर देखो जरा"*
"क्या-खोया,क्या-पाया
साथी,
इस जीवन में-
सोचकर देखो जरा।
तेरा-मेरा करते -करते साथी,
कितना-कुछ खोया हमने-
सोचकर देखो जरा।
अपने अपनो और देश हित में साथी,
घर में रह कर दिया योगदान-
सोचकर देखो जरा।
विपत्ति के समय में साथी,
तुम्हारा धैर्य देख रहा विश्व,
सोचकर देखो जरा।
तुम चाहोगें तो ये भी साथी,
बीत जायेगी काल रात्रि-
सोचकर देखो जरा।
होगा जीवन का नया सबेरा साथी,
छायेगी खुशियाँ ही खुशियाँ-
सोचकर देखो जरा।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःः        सुनील कुमार गुप्ता
sunilgupta.
ःःःःःःःःःःःःःःःःःः        25-04-2020


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

अखिल विश्व काव्यरंगोली परिवार में आप का स्वागत है सीधे जुड़ने हेतु सम्पर्क करें 9919256950, 9450433511