सुनील कुमार गुप्ता

कविता:- 
        *"दर्प"*
"जब घर कर जाता दर्प मन में,
बिखरने लगते संबंध-
इस जीवन में।
मैं-ही -मैं में जीता जीवन,
अपनों का सम्मान नहीं -
साथी इस जीवन में।
दर्प के कारण ही माटी में
मिलती हस्ती,
देखी साथी हमने-
इस जीवन में।
दर्प तो राजा रावण का न रहा,
हमारा-तुम्हारा-
क्या -इस जीवन में?
दर्प न करना साथी कभी,
सब कुछ दिया प्रभु का-
भजते रहना जीवन में।
प्रभु शरण में रह कर ही,
मिटेगा दर्प मन से-
बढ़ेगा अपनत्व इस जीवन में।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःः          सुनील कुमार गुप्ता
sunilgupta.
ःःःःःःःःःःःःःःःःःः        21-04-2020


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