कविता:-
*"ज्योत जले"*
"अपनत्व की धरती पर साथी,
नित सद्कर्मो की-
ज्योत जले।
सत्य-पथ हो जीवन का साथी,
मन में हो विश्वास-
फिर न किसी से डरे।
अग्नि पथ हैं -जीवन सारा,
प्रभु भक्ति संग-
सत्य की ज्योत जले।
जो भी कर्म करे साथी,
जीवन में उसे-
प्रभु को अर्पण करता चले।
हम की हो भावना मन में,
खुशियों से महके आँगन-
अपनत्व की ज्योत जले।
जब भी समय मिले साथी,
जपे प्रभु नाम-
प्रभु मूरत मन बसे।
अपनत्व की धरती पर साथी,
नित सद्कर्मो की-
ज्योत जले।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःःःःः सुनील कुमार गुप्ता 08-04-2020
"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
सुनील कुमार गुप्ता
Featured Post
दयानन्द त्रिपाठी निराला
पहले मन के रावण को मारो....... भले राम ने विजय है पायी, तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम रहे हैं पात्र सभी अब, लगे...
-
सुन आत्मा को ******************* आत्मा की आवाज । कोई सुनता नहीं । इसलिए ही तो , हम मानवता से बहुत दूर ...
-
मुक्तक- देश प्रेम! मात्रा- 30. देश- प्रेम रहता है जिसको, लालच कभी न करता है! सर्व-समाजहित स्वजनोंका, वही बिकास तो करता है! किन्त...
-
नाम - हर्षिता किनिया पिता - श्री पदम सिंह माता - श्रीमती किशोर कंवर गांव - मंडोला जिला - बारां ( राजस्थान ) मो. न.- 9461105351 मेरी कवित...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें