कविता:-
*"पर्यावरण"*
"पर्यावरण की रक्षा को साथी,
मिल कर जीवन में-
करते रहो जतन।
इतने लगाये वृक्ष,
बनी रहे हरियाली-
बढ़ते रहे वन।
प्रात: भ्रमण को मिले,
सार्थकता-
तृप्त हो नयन।
शुद्ध हो वातावरण,
कम हो प्रदूषण-
शांतिपूर्ण हो शयन।
महकता रहे जीवन में,
उपवन सारा-
सुगन्धित हो सुमन।
मिलते रहे फल-फूल औषधी,
सार्थक हो जीवन-
बलिष्ठ हो तन-मन।
भटके न नभचर,
आसरा मिले उनको-
सार्थक हो वन।
पर्यावरण की रक्षा को साथी,
मिलकर जीवन मेंं-
करते रहो जतन।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःःः सुनील कुमार गुप्ता
sunilgupta.
"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
सुनील कुमार गुप्ता
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