सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
       *"अनदेखी"*
"अनदेखी राहो पर चलना साथी,
सहज़ नहीं होता-
साथी इस जीवन में।
चाही-अनचाही व्यथा मन की साथी,
मिटती नहीं कभी-
स्वयं इस जीवन में।
संग चले जो साथी-साथी,
मिलती राहे-
इस जीवन में।
सत्य -पथ चल कर ही साथी,
होता अपनत्व का अहसास-
साथी इस जीवन में।
सद्कर्म की हो पूजा जब जब साथी,
मिलती सफलता-
अनदेखी राहो पर जीवन में।
अनदेखी राहो पर चलना साथी,
सहज नहीं होता-
इस जीवन में।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःःःः        सुनील कुमार गुप्ता
sunilgupta     14-04-2020


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