सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
       *"लहज़ा"*
"दौलत के अभिमान में साथी,
बदल जाता-
अपनो का लहज़ा।
अपने-बेगाने बन जाते साथी,
बेगाने अपने-
दौलत का नशा और लहज़ा।
भूल जाता जीवन साथी,
कौन-अपना-बेगाना-
बस अपनी-अपनी कहता।
मैं ही मैं में खोया रहता साथी,
कटुता होती वाणी में-
भूल जाता सभ्यता का लहज़ा।
सभ्यता की दहलीज़ पर साथी,
हो मृदु वाणी-
सार्थक हो जीवन और लहज़ा।
दौलत के अभिमान में साथी,
बदल जाता-
अपनो का लहज़ा।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःःः         सुनील कुमार गुप्ता
sunil      02-04-2020


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