सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
       *"माँ"*
"दुनियाँ में नित-दिन देता रहे,
तुझे दुआएं पल-पल-
माँ जैसा कोई नहीं।
देखे जब भी तुझको,
खिलाएं पकवान-
माँ जैसा कोई नही।
छाए न कभी गम की बदली,
देती रहे आशीष-
माँ जैसा कोई नही।
मिलती जो शीतल छाँव,
माँ के आँचल सा-
कही कोई नही।
खुशियों से महके घर आँगन,
छाये मधुमास देती आशीष-
माँ जैसा कोई नहीं।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःःः         सुनील कुमार गुप्ता
sunilgupta.
ःःःःःःःःःःःःःःःःः          19-04-2020


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...