सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
     *"पूनम का चाँद"*
"पूनम का चाँद निकला,
चाँदनी में नहाया-
सारा जहाँ।
चाँद से भी सुंदर जो,
मन बसी-
उसे ढूँढे़ कहाँ?
चाँद की चाँदनी संग,
बरसता अमृत-
धरती है-जहाँ।
महकती धरती -अंबर,
प्रेम पथिक बन-
भटके कहाँ?
नींद आती नहीं अब,
सपनों में भाती नहीं-
उसको ढूँढू कहाँ?
पूनम का चाँद हो तुम साथी,
अमावश का अंधकार मैं-
जीवन में -
मिलन होगा -कहाँ?
पूनम का चाँद निकला,
चाँदनी में नहाया-
सारा जहाँ।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःः          सुनील कुमार गुप्ता
sunilgupta.
ःःःःःःःःःःःःःःःःःः       18-04-2020


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