चाँद में ही चाँदनी जिन्दा रही।
प्यार में दिल की लगी जिन्दा रही।
***
आज वीराना हुआ चाहे शहर।
पर अजब इक खामुशी ज़िन्दा रही।
***
मौत का आया हुआ है जलजला।
बस घरों में ज़िन्दगी जिन्दा रही।
***
यूं अंधेरे से भरा था आसमां।
चांद की पर रोशनी जिन्दा रही।
***
हो भले साया दुखों का खत्म हों।
शुष्क आंखों में नमी जिन्दा रही।
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सुनीता असीम
१/४/२०२०
"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
सुनीता असीम
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