सुनीता असीम

मिल रही ये..... सजा कैसी।
डर दिखाता अदा कैसी।
***
दूर तक है यहां अंधेरा ही।
जल रही फिर वहां शमा कैसी।
***
इंतिहा हो गई सितम की भी।
अब सुकून की हो इब्तिदा कैसी।
***
जिन्दगी छीन ले किसी की जो।
मौत उसपर करे दया कैसी।
***
मैं सुकूँ और चैन से जीऊँ।
ये दी तुमने दुआ कैसी।
***
मौसमों से मिलीं बहारें जब।
आ गई थी तभी घटाकैसी।
***
एक हम और तुम हुए थे तो।
बीच में आ गई अना कैसी।
***
सुनीता असीम
१५/४/२०२०


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...