सुनीता असीम

वक्त से अपनी ये शिकायत है।
कर रहा खुद से ही बगावत है।
***
जा मिला साथ उसके है ये तो।
जिससे अपनी हुई अदावत है।
***
बस उसीपे पड़ा है ये भारी।
जिसने रब की नहीं जियारत है।
***
फिक्र मेरी रही यही है अब।
क्या नहीं इसकी कुछ जमानत है।
***
वश में उसके धरा गगन हैं सब।
देश क्या और क्या विलायत है।
***
सुनीता असीम
7/4/2020


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