सुनीता असीम

सभी की छिनी आज आजादियाँ हैं।
शुरू हो रही सिर्फ        बर्बादियाँ है।
***
दवा कर रहे जो बिमारों की    देखो।
उन्हें  मिल रहीं अब फक़त गालियां हैं।
***
नहीं जानते भला क्या  बुरा           क्या।
कि हाथों की किनके वो कठपुतलियां हैं।
***
भरे जा रहे जो अनाजों को घर में।
वो सरकार में ढूंढते खामियां हैं।
***
कि जल्दी ढलेंगी ये काली सी रातें।
यही कह रहीं आज खामोशियां हैं।
***
सुनीता असीम
१६/४/२०२०


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