सुनीता असीम

दिल किसी का प्यार से अपना बनाना कब मना है।
इक मुहब्बत की शमा दिल में जलाना कब मना है।
***
जिन्दगी भर घास डाली ही नहीं जिसने किसीको।
सो रहे अहसास उसके पर जगाना कब मना है।
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सख्त दिल वो हो गया है ख़ार दुनिया के उठाके।
भाव की सूखी धरा पे गुल खिलाना कब मना है।
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रात भर बोझिल रहीं हैं नींद से आँखें मेरी तो।
पर तेरे दीदार को पलकें उठाना कब मना है।
***
दौर में इस बेवफाई के हमारा इश्क में अब।
नित नई सी प्रेम की पींगें बढ़ाना कब मना है।
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सुनीता असीम
11/4/2020


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