गीतिका
मिट गए हमको जमाने से मिटाने वाले।
आज कदमों में झुके हमको झुकाने वाले।
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इंतिहाई है मुहब्बत यूं खूदा से हमको।
नाखुदा लगते रहे हमको जमाने वाले।
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बेवफा दोस्त मुहब्बत हो गए हैं अब तो।
लोग मिलते ही नहीं साथ निभाने वाले।
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दूर से देखके जिसने था सिकोड़ा मुंह को।
मिल रहे हैं आज वही नाम भुलाने वाले।
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दूर जाकर जो कभी आए नहीं वापस भी।
खो गए जाने कहां पास बुलाने वाले।
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सुनीता असीम
२७/४/२०२०
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