सुनीता असीम

मुहब्बत से उसने पुकारा नहीं था।
मेरा प्यार जिसको गवारा नहीं था।
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वो मेरा कसू था मुहब्बत जो की थी।
उन्होंने मेरा कुछ   बिगाड़ा नहीं था।
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मिलाईं न हमसे निगाहें   भी।  तुमने।
हमारा भी ऐसा       इरादा  नहीं  था।
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हमारे दिलों में  जला फिर भड़क  के।
जला  कोई  वैसा     शरारा  नहीं  था।
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तुम्हारा ये दिल भी मचल क्यूं उठा फिर।
दिया हमने कुछ जब     हवाला नहीं था।
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सुनीता असीम
१९/४/२०२०
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