मुहब्बत से उसने पुकारा नहीं था।
मेरा प्यार जिसको गवारा नहीं था।
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वो मेरा कसू था मुहब्बत जो की थी।
उन्होंने मेरा कुछ बिगाड़ा नहीं था।
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मिलाईं न हमसे निगाहें भी। तुमने।
हमारा भी ऐसा इरादा नहीं था।
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हमारे दिलों में जला फिर भड़क के।
जला कोई वैसा शरारा नहीं था।
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तुम्हारा ये दिल भी मचल क्यूं उठा फिर।
दिया हमने कुछ जब हवाला नहीं था।
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सुनीता असीम
१९/४/२०२०
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"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
सुनीता असीम
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