सुनीता उपाध्याय

सरे बाजार वीरानी       बहुत है।
हुई मायूस जिंदगानी   बहुत है। 
***
छिपे हैं रोग से डरकर सभी अब।
हुई अब तक वो नादानी बहुत है।
***
सफीना डूबता अक्सर वहीं पर।
समंदर में जहां पानी    बहुत है।
***
कि धोते हाथ तुम रहना  हमेशा।
परेशानी ये अनजानी    बहुत है। 
***
न देखें धर्म जाति ये     करोना।
इसे लेनी तो कुरबानी  बहुत है। 
***
जिसे हो जान की परवाह सुन लो।
कयामत की घड़ी आनी बहुत है।
***
सड़क पर जा रहे देखो संभलना।
मिलेगी मौत आसानी    बहुत है।
***
सुनीता उपाध्याय
21/4/2020


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...