सुरेंद्र सैनी बवानीवाल "उड़ता " झज्जर (हरियाणा

नज़र आ गया... 


मुददतों बाद मेरा दोस्त नज़र आ गया. 
जैसे तपते सहरा में समंदर नज़र आ गया. 


किसी बेचैनी में मायूस हुआ जाता था, 
आज लोट कर नसीब मेरा घर आ गया. 


अबतक की महफ़िल ख़ामोशी में गुजरी है, 
तेरे दम,मुझमें बातें बनाने का हुनर आ गया. 


अब तो तुम भी हर बात पर मुस्कुराते हो, 
लगता है मेरी सोहबती का असर आ गया. 


सारे शहर में ढूँढा, मुझे तू दिखाई ना दिया, 
तुझे खोजते-तलाशते मैं इधर आ गया. 


क्यों तुझे खल रही है ये बुलंदी मेरी, 
जो तू मुझे बदनाम करने पे उतर आ गया. 


महफ़िल चली लम्बी सभी यार-दोस्त बैठे रहे, 
पता ना चला,कब जाम लगाते सहर^ आ गया. (सुबह )
तंग थी गलियां बहुत, ऊँचे-नीचे थे रास्ते, 
पगडंडियों पर चलते,देखो शहर आ गया. 


अपने अक्स को निहारना क्या समझदारी है, 
इस ठहरे हुए पानी में कैसे भंवर आ गया. 


वो जवाब देने में बहुत वक़्त लेता है अकसर, 
मुश्किल था फैसले पर आना, वो मगर आ गया. 


लगा उसकी रूह मार दूंगा, वो अगर आ गया, 
"उड़ता "क़त्ल करने का, तुझमें जिगर आ गया. 



स्वरचित मौलिक रचना. 


द्वारा - सुरेंद्र सैनी बवानीवाल "उड़ता "
झज्जर (हरियाणा )


संपर्क -9466865227


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...