मयखाने में दर्ज़...
और मेरे दर्द का क्या मर्ज है.
मेरा नाम तेरे मयखाने में दर्ज़ है.
गुनगुना जो लेता हूँ तन्हाई में,
ये मेरे छलकते जामों की तर्ज़ है.
जो मुझे पीने से रोकता है अकसर,
क्यों ये ज़माना बड़ा खुदगर्ज़ है.
साक़ी अपना कर्म ठीक ना करे,
उसे मयकशीं सीखना मेरा फर्ज़ है.
पीने से उसको नहीं भूलोगे "उड़ता ",
उसकी सूरत तेरे दिल में बर्ज़^ है. (छिपा हुआ ).
स्वरचित मौलिक रचना.
द्वारा - सुरेंद्र सैनी बवानीवाल "उड़ता "
झज्जर (हरियाणा ).
संपर्क - 9466865227.
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