किसान...
परमेश्वर की माया है
दुनियां चलती छाया है
अनाज उगाने वाले को
प्रभू ने लाचार बनाया है.
धरती तप रही आग सी
उसने फिर भी अन्न उगाया है.
वोटों की बाज़ारी में
किसे उसका ख्याल आया है.
सरकार ने कुछ नहीं समझा
उसका, बातों से मन बहलाया है
स्वयं खा कर भरपेट भोजन
उसे खाली पेट सुलाया है.
कैसे होती उसकी समृद्धि
मौसम ने बाण चलाया है
खराब हुई है फसलें उसकी
हमें कहाँ तरस आया है.
वो भी थके इंसान है
पर कभी नहीं अलसाया है
लिखो पर ये मत भूलो "उड़ता "
उसने अन्न से तारुफ़ करवाया है.
स्वरचित मौलिक रचना.
द्वारा - सुरेंद्र सैनी बवानीवाल "उड़ता "
झज्जर (हरियाणा )
संपर्क - +91-9466865227
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