विकास शर्मा

घूरती हुई नजरों का ईलाज कर दो,
बस उनमें संस्कारों से लाज भर दो।
दामन दागदार होने से बच जाएंगे,
एक सिर कलम तुम आज कर दो।


खुद को तुम साबित बाज कर दो,
इस क्रांति का तुम आगाज कर दो।
वो अपना कहाँ जो नोच डाले रूह,
काट कर गर्दन दफन राज कर दो।


आज से तुम शुरू ये रिवाज कर दो,
मुंह से निकलें ना अल्फाज कर दो।
औरत ही दुश्मन है औरत की अब,
इनके नाम बुराई का ताज कर दो।


शर्म छोड़कर बुलंद आवाज कर दो,
बस पूर्ण तुम इतना सा काज कर दो।
"विकास" देगा तुम्हारा साथ हमेशा,
ऐसा ना हो रिश्तों का लिहाज कर दो।


©® विकास शर्मा


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...