विनय साग़र जायसवाल

ग़ज़ल


साज़े-दिल पर ग़ज़ल गुनगुना दीजिए
शामे-ग़म का धुँधलका हटा दीजिए


ग़म के सागर में डूबे न दिल का जहाँ
नाख़ुदा कश्ती साहिल पे ला दीजिए


एक मुद्दत से भटके लिए प्यास हम
साक़िया आज जी भर पिला दीजिए 


इल्तिजा कर रहा है ये रह-रह के दिल
*फ़ासला आज हर इक मिटा दीजिए* 


कर रही हैं बहारें भी सरगोशियाँ 
मन का  पंछी हवा में उड़ा दीजिए 


मुन्हसिर आपकी हम तो मर्ज़ी पे हैं
आपके दिल में क्या है  बता दीजिए


है ये मुमकिन कि दोनों ही घुट-घुट मरें
बात बिगड़ी हुई अब बना दीजिए 


अपनी मंज़िल की जानिब रहूँ गामज़न
मेरे जज़्बात को हौसला दीजिए 


इन अंधेरों में दिखने लगे रास्ता 
मेरे मुश्किलकुशा वो ज़िया दीजिए



मेरा महबूब ग़ज़लों में हो जलवागर 
मेरे लफ़्ज़ों में वो ज़ाविया  दीजिए


कट ही जायेगा ख़ुशियों से *साग़र* सफ़र 
आप रह-रह के बस मुस्कुरा  दीजिए 


🖋विनय साग़र जायसवाल


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