विनय साग़र जायसवाल

ग़ज़ल---


सरकार ग़ज़ल सुन कर नाहक ही उछलते हैं 
हम जैसे सुखनवर ही ज़हनों को बदलते हैं


यह बात भी लिख देना सूरज की हथेली पर
शायर तो अंधेरों के उन्वान बदलते हैं


ऐ दोस्त सदाकत की बातें हैं किताबों में
इस दौर में कितनों से ईमान संभलते हैं


माहिर हैं सियासत के वो जानते हैं सब कुछ
यह लोग फ़कत नारे सुन सुन के बहलते हैं


यह कह दो सितमगर से कुछ खौफ़ नहीं हमको 
हम बदले ज़माने की रफ़्तार पे चलते हैं


मालूम नहीं है क्या यह अहले-चमन तुमको
तितली के कलेजे भी फूलों को मचलते हैं


यह सोच के ही हमने पत्थर के सनम पूजे
सुनते हैं मुहब्बत से पत्थर भी पिघलते हैं


यह बात दलीलों से आई है समझ *साग़र* 
कानून को पढ़ कर ही कानून निकलते हैं


🖋विनय साग़र जायसवाल
सुखनवर--कवि/शायर
उन्वान-शीर्षक
सदाकत--सच्चाई ,सत्यता


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