ग़ज़ल----
जश्नने-दीवानगी यूँ मनाया करो
जाम आँखों से अपनी पिलाया करो
रोज़ छाती नहीं है घटा प्यार की
प्यार की बारिशों में नहाया करो
दिल को तुमसे बिछड़ना ग़वारा नहीं
मेरी आवाज़ सुन लौट आया करो
जब उतरने लगे मयकशी का नशा
मेरी आँखों में तुम डूब जाया करो
सारी महफ़िल की नज़रें हैं अपनी तरफ़़
तीर नज़रों के छुप-छुप चलाया करो
शीशा-ऐ-दिल है मेरा ये नाज़ुक बहुत
मुझपे जौर-औ-सितम यूँ न ढाया करो
टूट जाये न *साग़र* ये मेरा यक़ीं
अपना वादा कभी तो निभाया करो
🖋विनय साग़र जायसवाल
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