हेआदि अनादि जगत नियंता ।
हे महादेव हर संकट हंता ।
प्रलय यहीं फिर उत्पत्ति ।
है यही श्री हरि की शक्ति ।
जब कांपी सृष्टि असुरो के भय से,
तब देता जगत पिता तू ही शक्ति ।
शेष कही जब कोई आस नही ,
साहस देती है तब तेरी भक्ति ।
मिल जाये हल इस संकट का,
परम पिता सुझाओ कोई युक्ति ।
करुण पुकार सुनो "निश्चल"की,
पा जाये जन संकट से मुक्ति ।
....विवेक दुबे"निश्चल"@...
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