अविनाश सिंह* *लेखक*

🌱🌱 *हाइकु*🌱🌱


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धरती माता


होती अन्न की दाता


क्यों बेच खाता।


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कोरोना युद्ध


परमाणु है फैल


प्रकृति खेल।


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सबने कहा


सब कुछ है पास


शांति विनाश।


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धन की भूख


तन से मिले सुख


रहना दूर।


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मन की शान्ति


खुले आसमान में


न शहर में।


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ट्रैन में मौत


सब ओढ़े चादर


है बेखबर।


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वर्षा का जल


दे मन को शीतल


जग निर्मल।


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दुर्गा पूजते


घर में है पीटते


मर्द बनते ₹।


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बेटी का जन्म


फैल गया सन्नाटा


चिंता सताता।


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दिया है सोना


फिर भी जोड़े हाथ


बेटी का बाप।


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दहेज भय


पिता को है सताये


उम्र घटाए।


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बेटी का दर्द


समझती है अम्मा


वह भी बेटी।


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मन मंदिर


होते है स्वच्छ द्वार


भर दो प्यार।


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*अविनाश सिंह*


*लेखक*


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