चहुँ जुग तीनि काल तिहुँ लोका।
भये नाम जपि जीव बिसोका।।
बेद पुरान संत मत एहू।
सकल सुकृत फल राम सनेहू।।
।श्रीरामचरितमानस।
चारों युगों में,तीनों कालों में और तीनों लोकों में रामनाम को जपकर जीव शोकरहित हो गये।वेदों,पुराणों और सन्तों का मत यही है कि समस्त पुण्यों का फल प्रभुश्री रामजी के नाम में प्रेम होना है।
।।जय सियाराम जय जय सियाराम।।
भावार्थः---
चारों युगों अर्थात सत्ययुग,त्रेतायुग,द्वापरयुग व कलियुग में, तीनों कालों अर्थात भूतकाल, वर्तमानकाल व भविष्यकाल में तथा तीनों लोकों अर्थात स्वर्गलोक, पृथ्वीलोक व पाताललोक में प्राणियों का शोकरहित होना केवल रामनाम के जप करने से ही सम्भव हुआ है।वैसे तो तीन लोकों के अतिरिक्त चौदह लोकों का भी उल्लेख मिलता है।इनमें भूलोक,भुवर्लोक,स्वर्लोक,महर्लोक,जनलोक,
तपलोक और सत्यलोक ऊपर के लोक हैं तथा अतल, वितल,सुतल,तलातल,महातल,रसातल और पाताल लोक नीचे के लोक हैं।
विशोक कहने का भाव यह है कि रामनाम के जप करने से सभी जीव जन्म,जरा,मृत्यु के त्रिताप से मुक्त हो गये।
वेद,पुराण व सन्त मत कहने का भाव यह है कि ये सभी एक स्वर से इस बात को स्वीकार करते हैं कि सभी पुण्यों का फल रामनाम में प्रेम होना ही है।अर्थात समस्त पुण्यकर्म उसी परमब्रह्म को प्राप्त करने के लिए किये जाते हैं।परमब्रह्म परमात्मा ही सच्चिदानन्द है अर्थात वही सत्य,चेतन और आनन्द स्वरूप है।शाश्वत सुख की प्राप्ति एवं दुःख का विनाश भगवान की भक्ति के बिना सम्भव ही नहीं है।गो0जी ने उत्तरकाण्ड में श्री काकभुशुण्डि जी के मुख से श्रीगरुड़जी को यही उपदेश देने की बात कही है।यथा,,,
सिव अज सुक सनकादिक नारद।
जे मुनि ब्रह्म बिचार बिसारद।।
सब कर मत खगनायक एहा।
करिअ रामपद पंकज नेहा।।
श्रुति पुरान सब ग्रँथ कहाहीं।
रघुपति भगति बिना सुख नाहीं।।
गुरु व सन्तजनों की सेवा करने से भजन करने की विधि प्राप्त हो जाती है।इससे हृदय में जो प्रकाश हो जाता है उसे ही सभी सुकृत्यों का फल कहा जा सकता है।वास्तव में यही रामस्नेह है।गुरुदेव वशिष्ठजी स्वयं यही बात कहते हैं।यथा,,,
जप तप नियम जोग निज धर्मा।
श्रुति सम्भव नाना सुभ कर्मा।।
ग्यान दया दम तीरथ मज्जन।
जहँ लगि धर्म कहत श्रुति सज्जन।।
आगम निगम पुरान अनेका।
पढ़े सुने कर फल प्रभु एका।।
तव पद पंकज प्रीति निरन्तर।
सब साधन कर यह फल सुन्दर।।
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सोइ सर्वग्य तग्य सोइ पंडित।
सोइ गुन गृह बिग्यान अखंडित।।
दच्छ सकल लच्छन सुत सोई।
जाकें पद सरोज रति होई।।
।।जय राधा माधव जय कुञ्जबिहारी।।
।।जय गोपीजनबल्लभ जय गिरिवरधारी।।
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