भक्तवत्सल भगवान
राम भगत हित नर तनु धारी।
सहि संकट किये साधु सुखारी।।
नामु सप्रेम जपत अनयासा।
भगत होहिं मुद मंगल बासा।।
।श्रीरामचरितमानस।
प्रभुश्री रामचन्द्रजी ने अपने भक्तों के हित के लिए मनुष्य शरीर धारण करके स्वयं कष्ट सहकर साधुओं को सुखी किया,परन्तु भक्तगण प्रेम के साथ नाम का जप करते हुए सहज ही में आनन्द और कल्याण के घर हो जाते हैं।
।।जय सियाराम जय जय सियाराम।।
भावार्थः---
भगत हित मनुष्य शरीर धारण करने का तात्पर्य यह है कि स्वयं भगवान को भूलोक पर मनुष्य शरीर में अनेक कष्ट उठाने पड़े।इसके पीछे मुख्य उद्देश्य अपने भक्तों को सुखी करना ही था।यथा,,,
सो केवल भगतन हित लागी।
धरेउ सरीर भगत अनुरागी।।
भगत हेतु भगवान प्रभु राम धरेउ तनु भूप।
किये चरित पावन परम प्राकृत नर अनुरूप।।
माता सतीजी को भगवान शिवजी ने उनके भ्रमित होने पर यही बात समझाने का प्रयास किया था।यथा,,,
सोइ राम ब्यापक ब्रह्म भुवन निकायपति मायाधनी।
अवतरेउ अपने भगत हित निजतन्त्र नित रघुकुलमनी।।
परमपिता परमात्मा का हर शरीर धारण करना कष्टदायक ही है क्योंकि मनुष्य शरीर में उन्हें सांसारिक क्रियाओं यथा जन्म व मृत्यु से भी जूझना पड़ता है।और जन्म और मृत्यु अत्यन्त कष्टदायक कहे जाते हैं।यथा,,
जनमत मरत दुसह दुख होई।
पुनः
अजित बसन फल असन महि सयन डासि कुस पात।
बसि तरु तर नित सहत हिम आतप बरसा बात।।
कहने का भाव यह है कि प्रभुश्री रामजी ने नर शरीर में अवतार लेकर वनगमन और दुष्टों का सँहार में अनेक कष्ट झेले और तब अपने भक्तों को सुखी कर पाये।इसके विपरीत रामनाम बिना परिश्रम के केवल सप्रेम नाम उच्चारण करने से ही भक्तों को सभी प्रकार के सुख प्रदान कर देता है और मरणोपरांत भक्तों को परमगति अर्थात मोक्ष भी प्राप्त करा देता है।
।।जय राधा माधव जय कुञ्जबिहारी।।
।।जय गोपीजनबल्लभ जय गिरिवरधारी।।
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