दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल महराजगंज, उत्तर प्रदेश

*_सूरज की तपिश_*


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चिलचिलाती गर्मियों के दरमियां


      इक बात कहनी है,


सूरज की तपिश से हैं परेशां


     इक बात कहनी है।।


 


चढ़ रहे पारे सा दिन धूप


नहीं है शीतल छाया कहीं


प्यासे हैं सब पंक्षी पथिक


कट रहे हैं वृक्ष सारे


इक बात कहनी है।


 


ऐ खुदा रहम कर तूँ


थोड़ी राहत अदा कर तूँ


पांव में छाले पड़े हैं


जीवन पथ में कांटे बड़े हैं


इक बात कहनी है।


 


ऐ मेरे मालिक सुन अरदास तूँ


सूर्य क्यों आग का गोला हुआ


जल रही धरा जल सूख रहा


हे! प्राणियों में प्राण देने वाले


रहें खुश सब इक बात कहनी है।


 


कर रहीं हैं नदियां अरदास तेरा


बरस जल जीवन भर जाए मेरा


लू चले या आग ऊगले


हो करम प्यास सबकी बुझती रहे


सूख रहीं नदियां भर जाए जल तेरा


व्याकुल हो यही इक बात कहनी है।


 


 मौलिक रचना:-


दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल


महराजगंज, उत्तर प्रदेश ।


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