दीपक "कविबाबु" मुज०(बिहार

नमन मंच


दिनांक 30 मई 2020


विषय आंखें


 


तुम्हारे आंखों को इंतजार है किसी का


खबरदार! अगर कोई रोका तो


संकुचित विषम परिस्थिति में भावना को


कोमल कली सी खिलती अंतर्मन


इस जग में मेरा भी कोई अपना होता तो


 


मेरी आंखें कुछ निहार रही है


स्वप्न में तुम्हारी चित्र उतार रही है


रोती_ बिलखती तुम्हें पुकार रही है


खुद को खुद ही यह संवार रही है


 


मेरी आंखों से तुम्हारी आंखों तक


अनबुझी पहेली सी एक बातों तक


राहों में तुम्हारी राह देखकर


अपनी पलकों को भींगा रही है


 


उठता प्रश्न आंखों का कसूर कौन है?


अब इस जहां इन वादियों में


अनजान कातिल वह वेकसूर कौन है?


 


दीपक "कविबाबु"


मुज०(बिहार)


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