डॉ हरिनाथ मिश्र

एक प्रयास 


क़ुदरत का है कमाल या इंसान का फ़ितूर।


होता है प्यार कैसा बता दो मेरे हुज़ूर??


          मत तोड़ना कली को चटका के मेरे यार।


          है क़ाबिले दीदार कोमल कली का नूर।।


जीवन का रंग बसंती हो जाए तो बेहतर।


इसकी ही है जरूरत यही मुल्क़-ए-ग़ुरूर।।


         होता नहीं हासिल है कुछ,आँसू बहाने से फ़क़त।


         जंग-ए-आज़ादी का बस है त्याग ही दस्तूर।।


माली बग़ैर गुलशन तो रहता नहीं है खाली.


डूबा हुआ ये सूरज निकलेगा फिर जरूर।।


         कहता है छोटा दीपक सुन लो ऐ आफ़ताब।


         रहता मेरा है क़ायम बदली में भी सुरूर।।


देके ज़रा सा ध्यान अब तो सुन लो नामदार।


चहिए अमन व चैन को बस एकता भरपूर।।


                           ©डॉ. हरि नाथ मिश्र


                              9919446372


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