"मन ठहरा मन बहता"
मन की गति न जाने कोई
जो जाने सो योगी होई
मन्थर चले पवन ज्यों बहती
मन भी उड़े संग ज्यों तितली
मन पर चले न कोई शासन
ध्यान, योग लाये अनुशासन
मन बहता सरिता सम पल-पल
ठहरे तो बन जाये जड़ सम
चंचल, चपल है मन अभिमानी
कसै डोर तो बने वो ज्ञानी
इत -उत उडै फिरै भँवरा सा
एक पल ठहर होए पगला सा
बहता मन प्रतिपल सुख बाँटे
ठहरा मन देखे न आगे
बहता मन स्वच्छन्द विचरता
ठहरे मन प्रभु भजन मैं रमता
डॉ निर्मला शर्मा
दौसा राजस्थान
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें