*** आह ज़िन्दगी ***
जिंदगी तुम्हारे पास
रहकर भी तुमसे
कितना दूर रहा हूँ
ज़िंदगी अब तुम्हें
मैं जीना चाहता हूँ
सारी उम्र गुजारी
जिम्मेदारीयाँ निभाने में
अब तो मैं तुम्हे
जी भरकर
जीना चाहता हूँ
बचपन में पढाई और
युवा होकर रोज़गार
ढूढ़ने में जिंदगी गवाई
शादी के बाद नयी
जिम्मेदारियों ने घेरा
बढ़ा परिवार तो
बच्चो की ज़िम्मेदारी आई
बच्चो को बडा बनाने
के चक्कर में
अपनी ज़िंदगी गवांई
बच्चों ने बड़ा बनकर
अपनी अलग दुनिया बसाई
वापस ज़िन्दगी मुझे
उस मोड़ पर लाई
अगर जीना है तो
आज जियो अभी जियो
क्योंकि शायद कल
कभी आता नहीं हैं
लेखक -
डॉ प्रताप मोहन "भारतीय 308, चिनार - ऐ - 2 ओमैक्स पार्क वुड - बद्दी - 173205 (H P)
मोबाइल - 9736701313
Email - DRPRATAPMOHAN@GMAIL.COM
"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
डॉ प्रताप मोहन "भारतीय
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