*** आह ज़िन्दगी ***
जिंदगी तुम्हारे पास
रहकर भी तुमसे
कितना दूर रहा हूँ
ज़िंदगी अब तुम्हें
मैं जीना चाहता हूँ
सारी उम्र गुजारी
जिम्मेदारीयाँ निभाने में
अब तो मैं तुम्हे
जी भरकर
जीना चाहता हूँ
बचपन में पढाई और
युवा होकर रोज़गार
ढूढ़ने में जिंदगी गवाई
शादी के बाद नयी
जिम्मेदारियों ने घेरा
बढ़ा परिवार तो
बच्चो की ज़िम्मेदारी आई
बच्चो को बडा बनाने
के चक्कर में
अपनी ज़िंदगी गवांई
बच्चों ने बड़ा बनकर
अपनी अलग दुनिया बसाई
वापस ज़िन्दगी मुझे
उस मोड़ पर लाई
अगर जीना है तो
आज जियो अभी जियो
क्योंकि शायद कल
कभी आता नहीं हैं
लेखक -
डॉ प्रताप मोहन "भारतीय 308, चिनार - ऐ - 2 ओमैक्स पार्क वुड - बद्दी - 173205 (H P)
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