डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"जीवन में उत्साह जरूरी"


उत्साह का अभाव एक ऐसा बदनसीब बाप है जो निष्क्रियता जैसी  अनाथ बेटी को जन्म देता है,
ऐसी अभिशप्त बेटी सम्पूर्ण समाज में उपेक्षित और उपहासित हो जाती है,
प्रताड़ित होकर
नारकीय जीवन जीने के लिए विवश हो जाती है,
संसार में उसके लिए कोई स्थान नहीं, कोई पहचान औऱ सम्मान नहीं,
रौरव नरकगामिनी निष्क्रियता
अपने पापों का प्रायश्चित करती है,
अनेकानेक ठोकरें खाती है,
गिरती उठती और पुनः गिरती है,
रोती और चिल्लाती है,
कभी अभागे बाप को तो कभी खुद को कोसती है,
सामने अंधकार है,
जीवन बेकार है,
सबकुछ नकार है,
जिन्दगी को धिक्कार है।
मन अशान्त है,
वर्तमान और भविष्य भयाक्रांत हैं,
दिल में हलचल है,
बुद्धि विह्वल है,
सारे रास्ते अवरुद्ध हैं,
सारी परिस्थितियां विरुद्ध हैं,
जीवन में घोर निराशा है,
कहीं नहीं आशा है,
पैर में छाले हैं,
हृदय पटल को वेधते भाले हैं,
चौतरफा उदासी है,
यहाँ दूर-दूर तक
न तो काबा है और न ही काशी  है।


रचनाकार:


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801


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